Thursday, 16 April 2020

Always exalting solitude,
finding solace in emotions than reason,
moved deeply by Nature,
am I born in the wrong era?
Or am I one of the chosen ones
to keep the Romantic flame alive?

Tuesday, 14 April 2020

A conception in the womb
is the beginning of it all.
Consuming through out the span
we transcend to various stages of life,
still taking in so much from the Nature,
and when the time comes calling,
we need to pay through our body,
it was never ours,
a loan from the Nature,
we pay through our body.
A journey towards
the union with the Supreme Nature.

Question in my mind still lingers,
why do we get conceived at all ?

Sunday, 12 April 2020

A poem for the city I love !

काशी  कहें तोह ऐसा लगे 
जैसे हो केवल धर्म में सराबोर। 

वाराणसी कुछ ऐसा लगे 
जैसे प्राचार्य के कक्ष की औपचारिकता। 

जब बनारस होंठों को छुए 
तब लगे की कुछ बात है। 

पहलवान की लस्सी 
से संकट मोचन तक ,

अस्सी घाट की मसाला चाय 
से चिल्लम तक ,

सुबह की कचौड़ी जलेबी 
से दिन भर के गोलगप्पों तक ,

चाय की अड़ी पे चुस्कियों 
से पान की गुमटियों तक, 

रेशम के धागों 
से उनकी साड़ियों तक ,

गोदौलिया के विश्वनाथ मंदिर 
से दशाश्वमेध, मणिकर्णिका तक,

अपने आप की खोज में 
आते हैं सब बनारस ,

और होकर रह जाते हैं 
बस, ' बनारस ' . 

बनारस नहीं है कोई शहर 
बल्कि एक एहसास है ,

जब होठों को छुए 
तब लगे क्या स्वाद है। 

जब ' बनारस' होठों को छुए 
तब लगे ब्रह्माण्ड है।  

Friday, 10 April 2020

Enormous treasure
of stories within,
raring to be told.
Will she or she won't ?

Tuesday, 7 April 2020

ये सांसें अपनी

कभी न ठहरे ,
अनगिनत  अंधे दौड़ से निकलकर
सुनने या समझने
ये सांसें अपनी।

कभी न किया ग़ौर
बात सिर्फ थी इतनी
जीवन का आधार है
ये सांसें अपनी।

कभी न देखा इसे,
केवल किया महसूस,
ये सांसें अपनी।

कभी न मिली अहमियत  इसे,
जब तक ये हुई न आख़िरी,
ये सांसें अपनी।





Random thoughts or deliberate messages from the universe?

 It's been a while. Almost two years! So much has happened in these two years. Or maybe not.  Let me begin with things of the last year....