Sunday 16 October 2016

कार्तिक मास की पहली रात। बादलों ने पूरी तरह तुम्हे घेर रखा था।  तुम्हारे प्रकाश ने उन बादलों को लाल रंग की चादर ओढा दी थी.एक हवाई जहाज़ कहीं उन बादलों को चीरता हुआ, शायद तुम्हारे पास से गुज़रता हुआ आगे बढ़ रहा था. कुछ ही पल बाद इस पहाड़ी के पीछे से जिन बादलों ने तुम्हे छिपाने की कोशिश की थे, वे धीरे धीरे, अनचाहे मन से, पीछे हटने लगे. तुम्हारी लालिमा में सराबोर अब यह पहाड़ी भी जगमगा रही थी. लाल से सफ़ेद में तुम कब बदले, बस कुछ ही पलकों का झपकना था शायद. अब मैं यहाँ बैठी हूँ की शायद कुछ शब्द मेरे कलम से इस कागज़ पर भी उतर आएं. 

 The last time, in a very long time,  I was filled with awe,  was when I witnessed pure joy. The innocent cry  of a four years old  calling ...