Monday, 10 July 2017

कुछ बात तो है ज़रूर सावन में
की बादलों की मोटी चादर सी
आसमान ने चारों तरफ़ से ओढा है .
इससे पहले तो कभी यहाँ तो कभी वहाँ
यूँ ही बिखरे रहते थे.
बादलों को भी पता है कि
जो बात है वो सावन ही तो है .

सुबा सुबह यूँ आंख खुली
बून्दों की रिम झिम आहट से,
बूँदें अब कुछ ज़्यादा गिरिं
इंन काली घटा के गर्भ से
साथ दिया इनका
बिजलियो की कड़कियों ने
कुछ बात तो ज़रूर सावन में।

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