Monday, 8 July 2019

चंचल मन

 कभी अचानक हंस उठता है मन,
और कभी शून्य सा अनुभव कराता है।
कितना चंचल है यह मन
जो नित नए अनुभव कराता है।

कभी हँसी के ठहाके लगते हैं,
कि हर बात में कुछ अनोखा दिख जाता है।
कुछ ऐसा ही है यह चंचल मन,
जो खुशियों के परचम लहराता है।

कभी छोटी सी भी बात पे,
गहरा खोखलापन झलकाता है।
ऐसा ही तो है यह चंचल मन
जो शून्यता के खाइयों में गिराता है।

चंचल मन न रहता कभी स्थिर,
चलता है यह अंतर्द्वंद प्रतिदिन।
आराम मिले शायद जब,
वश में कर लूँ मन को एक दिन।



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