Sunday, 28 August 2016

सब कुछ जैसे थमा हुआ था
और अचानक
वह पहाड़ों के पीछे से
उड़ते हुए घने काले बादलों की टोली
और उनकी सवारी करते हुए
बूंदें।
बालकॉनी की रेलिंग पर
ठहरे हुए पैरों के ऊपर
उस एक बूँद का गिरना
जैसे किसी ने दस्तक दी हो आने की ,
और फिर एक साथ
बूंदों के गुट का ज़मीन पर आ धमकना ,
यह पहाड़ तो अभी भी रुका  हुआ है,
उसके पीछे से चमकती हुई बिजली,
कुछ पुरानी बातों को अपने तेज से
नहलाकर ताज़ा करती हुई,
सब कुछ तो थमा हुआ था ,
मगर अब शायद कोई हलचल हुई.  

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